
हर इंसान का आपकी तरफ़ देखना और आपके लिए अपने मन में धारणा बना लेना यह जाने बगेर कि आप वैसे नहीं जैसे आपको दुनिया देख रही है । इसी बात को कविता का रूप देने की कोशिश की है।
माना हम नज़र के बुरे है
लेकिन नज़रिया कभी बुरा नहीं
माना हम मन से बुरे है
लेकिन मानसिकता कभी बुरी नहीं
माना हमारे विचार अलग सही
लेकिन सोच कभी ग़लत नहीं
माना हर चीज़ की समझ नहीं
लेकिन दुनियादारी में तो डिग्री मिली
माना रिश्तेदारों से पहचान नहीं
लेकिन हर रिश्ते का मान सही
माना मैं गया घर से दूर सही
माँ की रोटियाँ सदा याद रही वहीं
माना ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं
लेकिन आशाओं की लिस्ट बहुत बड़ी
माना आदतन कोई आदत नहीं
लेकिन किसी एक को याद करना भूलता नहीं
माना दर्द झेलने में माहिर सही
लेकिन दुःख की आज भी सेहत भली
माना सुख भरे दिनों की सीमा घटी
लेकिन अच्छे दिनों की भी कमी खूब खली
माना भगवान की हरदम कृपा नहीं
लेकिन भक्ति भाव में कोई कमी नहीं
माना तारीफ़ें अपनी जगह ठीक सही
लेकिन हम इंसान तो बुरे नहीं ।
बहुत सही लिखा मेरे राजा ने
धन्यवाद माता जी