
सोचा था गुलाबों के शहर में आया हूँ
काँटों भरी सेज़ मिली
सोचा था हवाओं में बहेंग़े ख़ुशी ख़ुशी
आंधियों के थपेड़े मिलें
सोचा था अपनो के बीच में आया हूँ
वहाँ ग़ैरों की भीड़ मिलीं
सोचा था ग़रीबों का सहारा बनने आया हूँ
अमीरों की ग़रीबी दिखी
सोचा था दोस्तों की यारियाँ देखने आया हूँ
उड़ते परिंदे ही मिले
सोचा था सबसे सबकी बातें करने आया हूँ
खुद की सिर्फ़ आवाज़ मिलीं
सोचा था समाज की बुराई को एक संग मिटाएँगे
राजनीति और भ्रष्टाचार की मिलावट मिली
सोचा था मिली इस आज़ादी का खूब मज़ा लेंगे
परतंत्र विचार, धूमिल सोच और धरम में बंधे लोग मिले
सोचा था सबक़ लेंगे अपनी सारी कारगुजारियों से
ग़लतियों का अम्बार और (देश के) लूटेरों की फ़ौज मिली
सोचा था देश के लिए लड़ेंगे,लोहा लेंगे और शहीद हो जाएँगे
रणक्षेत्र बाँकुरो से सजा मिला,बाक़ी अलगाव पसंद और बुज़दिल ही मिले
सोचा देश के लिए सोचने वालें लोग उगाएँगे
हवाई बोल बोलने वाले ही मिले
सोचा देश को फिर से सोने की चिड़िया बनाएँगे
आधी अंग्रेज़ ले गए और बाक़ी साहूकारों के तिजोरी में मिली
सोचा था अपनी धरा को चाँद और तारों से सजाएँगे
चाँद चंद रह गए और तारे कहीं और झिलमिलाते मिले
सोचा था ठान लेंगे देश की अखंडता को क़ायम रखना
विभाजित देश और बँटा हुआ मजहबी इंसान मिला
Wah! Bahut achchha kaha hai aapne😊
Thanks dear for these beautiful comments
Welcome dear😀🙏
धन्यवाद आपका और आपके विश्वास का
Very true sir kya socha tha kya ho Gaya perfectly written according to the situations
धन्यवाद आपके स्नेह और शब्दों का
Thanks for the confidence you donated to me..
बहुत सुंदर लिखा आपने । आप मेरी साइट भी विज़िट कर लाइक और कमेंट कर बताएं कि मेरा प्रयास कैसा है । और फ़ॉलो करे🙏🙏